लाल
बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी-परिचय
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी भारत में सिविल
सेवाओं के लिए एक
शीर्षस्थ प्रशिक्षण संस्थान है। इसकी अध्यक्षता
निदेशक द्वारा (भारत सरकार के
सचिव स्तर के अधिकारी)
द्वारा की जाती है
और यह कार्मिक और
प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार का
एक संबद्ध कार्यालय है।
यह अकादमी अखिल भारतीय सेवाओं,
भारतीय विदेश सेवा, संघ की समूह
“क” सेवाओं तथा रायल भूटान
सेवा के प्रवेशकों के
लिए सामान्य आधारिक पाठ्यक्रम का आयोजन करती
है तथा भारतीय प्रशासनिक
सेवा (आई आए एस)
के नियमित भर्तियों तथा रायल भूटान
सेवा के सदस्यों के
लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण देती है। अकादमी
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों
के लिए सेवा- कालीन
तथा मिड कैरियर प्रशिक्षण
कार्यक्रमों और राज्य सिविल
सेवाओं से भारतीय प्रशासनिक
सेवा पर पदोन्नत अधिकारियों
के लिए इंडक्शन प्रशिक्षण
कार्यक्रम भी चलाती है।
इसके अलावा, समय समय पर
नीति तथा शासन से
संबन्धित विषयों पर कार्यशालाओं और
सेमीनारों का आयोजन करती
है।
मूल्यांकन
आवश्यक प्रशिक्षण
सिविल सेवाओं से संबन्धित भारत के संविधान का प्रावधान
प्रशिक्षण को शासित करने वाली नियमावलियां/प्रावधान
नियमावलियां/विनियमन जो अकादमी के
कार्य से संबन्धित है,
निम्नानुसार है: -
(1) भारतीय
प्रशासनिक सेवा (परिवीक्षा) नियमावली, 1954
(2) भ.प्र.से. भारतीय
प्रशासनिक सेवा परिवीक्षाधीन अधिकारियों
का अंतिम परीक्षा विनियमन, 1955
(1) भारतीय
प्रशासनिक सेवा (परिवीक्षा) नियमावली 1954
भारतीय प्रशासनिक सेवा (परिवीक्षा) नियमावली में भारतीय प्रशासनिक
सेवा में भर्ती व्यक्ति
के परिवीक्षाधीन अवधि का उल्लेख
किया गया है। परिवीक्षाधीन
अधिकारी को परिवीक्षा की
अवधि सफलतापूर्वक पूरा करने पर
स्थायी किया जाता है।
अकादमी में प्रशिक्षण के
समय, अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों को निदेशक के
अनुशासनिक नियंत्रण में रहना होता
है तथा प्रशिक्षण के
दौरान भुगतान किए जाने वाले
वेतन/अग्रिम इस नियमावली के
अंतर्गत आता है।
उन परिस्थितियों से संबंधित नियमावलियों
की सूची जिसके अंतर्गत
एक अधिकारी प्रशिक्षणार्थी को सेवा से
बर्खास्त किया जा सकता
है या उस स्थायी
पद पर प्रत्यावर्ती किया
जा सकता है जिसे
वह धारण किया होता
है या धारण करेगा
या सेवा में नियुक्ति
से पूर्व उसे निलंबित न
किया गया हो,
1.
यदि
वह नियम 9 के अंतर्गत पुनः
परीक्षा में असफल हो
जाता है
2.
यदि
केंद्र सरकार इस बात से
संतुष्ट होती है कि
परिवीक्षाधीन अधिकारी सेवा में भर्ती
के लिए अयोग्य था
या सेवा के सदस्य
बनने के लिए अनुपयुक्त
है
3.
यदि
केंद्र सरकार का यह मत
होता है कि उसने
परिवीक्षाधीन अवधि में अध्ययनों
या कर्तव्यों की जानबूझकर अवहेलना
की है
4.
यदि
सेवा के लिए आवश्यक
बुद्धि और चरित्र की
गुणवत्ताओं में कमी पाई
जाती है, या
5.
यदि
इन नियमावलियों के किसी भी
प्रावधान का अनुपालन करने
में विफल रहा है
उपरोक्त
धारा (क) के अंतर्गत
आने वाले मामले को
छोड़कर केंद्र सरकार इन नियमावलियों के
अंतर्गत किसी आदेश के
पारित करने से पहले
संक्षिप्त जांच करेगी।
(2)भारतीय
प्रशासनिक सेवा परिवीक्षाधीन अधिकारियों का अंतिम परीक्षा विनियमन, 1955
ये विनियमन इंडक्शन प्रशिक्षण के दौरान अकादमी
में आयोजित की जाने वाली
परीक्षाओं से संबन्धित है।
इसमें यह निर्धारित किया
गया है कि निदेशक
को परीक्षाओं की तिथियां, समय
और केंद्र का निर्णय लेने
का अधिकार है।
सिविल
सेवाओं से संबन्धित भारत के संविधान का प्रावधान
भारत के संविधान का
अनुच्छेद 311 सिविल सेवाओं से संबन्धित है
और इसमें संघ या राज्य
के अधीन सिविल पदों
में नियुक्त व्यक्तियों की सेवा समाप्ति,
पदच्युति या उसके रैंक
को कम करने का
प्रावधान है। इस अनुच्छेद
के प्रावधान निम्नानुसार है :
(1) कोई
भी व्यक्ति जो संघ की
सिविल सेवा या अखिल
भारतीय सेवा का सदस्य
है या संघ या
राज्य के अधीन सिविल
पद धारण किए हुए
है उसे एक अधीनस्थ
अधिकारी द्वारा सेवा से बर्खास्त
या पदच्युत नहीं किया जाएगा
जिसके द्वारा उसकी नियुक्ति की
गई हो।
(2) उपरोक्त
किसी भी व्यक्ति की
सेवा से बर्खास्तगी या
पदच्युति या रैंक में
कमी नही की जाएगी
सिवाय जिसमें उसके खिलाफ आरोप
की सूचना दी गई हो
और उन आरोपों के
संबंध में सुनवाई का
उपयुक्त अवसर दिया गया
हो बशर्ते जिसमें जांच के बाद
यह प्रस्ताव किया जाए कि
उस पर इस तरह
की कोई शास्ति लगाई
जाए, इस प्रकार की
जांच के दौरान प्रस्तुत
साक्ष्य के आधार पर
इस प्रकार की शास्ति लगाई
जा सकती है तथा
प्रस्तावित शास्ति पर अभ्यावेदन देने
का कोई अवसर उस
व्यक्ति को देना आवश्यक
नहीं होगा: बशर्ते कि यह धारा
निम्न में लागू नहीं
होगी-
जिसमें
एक व्यक्ति को उसके आचरण
के आधार पर सेवा
से बर्खास्त या पदच्युति या
रैंक में कमी कर
दी जाती है जिससे
आपराधिक आरोप पर दोष
सिद्ध हो, या
जिसमें
किसी व्यक्ति को बर्खास्त या
पदच्युत या रैंक को
कम करने की शक्ति
प्राप्त अधिकारी इस बात से
संतुष्ट होता है कि
कुछ कारणों से उस अधिकारी
द्वारा लिखित में रिकॉर्ड दर्ज
करना होता है, अतः
इस प्रकार की जांच करना
युक्तिसंगत रूप से व्यवहार्य
नहीं होता है।
जिसमें
राष्ट्रपति या राज्यपाल, यथास्थिति
इस बात से संतुष्ट
होता है कि राज्य
की सुरक्षा के हित में
यह इस प्रकार की
जांच करना उचित नहीं
है
(3) यदि
उपरोक्त ऐसे किसी व्यक्ति
के संबंध में प्रश्न उठता
है कि क्या (धारा
2) में यथा उल्लिखित इस
प्रकार की जांच करना
युक्तिसंगत रूप से व्यवहार्य
है, तो ऐसे व्यक्ति
को सेवा से बर्खास्त
या पदच्युति करने या उसके
रैंक को कम करने
के लिए अधिकारी का
निर्णय अंतिम होगा।
मूल्यांकन
आवश्यक प्रशिक्षण-
अकादमी में प्रशिक्षण कार्यक्रमों
की समय-समय पर
प्रशिक्षण आवश्यकताओं और मूल्यांकनों के
आधार पर रूपरेखा तैयार
की जाती है। प्रवेश
स्तर से लेकर वरिष्ठता
के उच्च स्तर तक
के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों
में सुधार लाने के लिए
उसकी समीक्षा, मूल्यांकन और उपायों की
संस्तुति करने हेतु विभिन्न
अध्ययन समूहों तथा समितियों का
समय-समय पर गठन
किया गया है। अभी
तक गठित कुछ अध्ययन
समूहों/समितियों का उल्लेख नीचे
किया गया है
(1) यू
सी अग्रवाल तथा अन्यों का अध्ययन समूह (1984)
1977 में, लाल बहादुर शास्त्री
राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी ने 1970 में शुरू किए
गए सैंडविच पैटर्न का पुनर्मूल्यांकन किया।
1986 में इसकी समीक्षा श्री
यू सी अग्रवाल, तत्कालीन
सचिव, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
की अध्यक्षता वाले अध्ययन समूह
द्वारा की गई। इस
अध्ययन समूह ने प्रशासन
में समस्या समाधान और सृजनात्मक सोच
पर ज़ोर दिया,
(2)डॉ
एस रमेश, श्री पी के लाहिड़ी तथा श्री पी के पटनायक की समिति (1996)
1996 में, तीन भारतीय प्रशासनिक
सेवा अधिकारियों श्री पी के
पटनायक, श्री एस रमेश,
श्री पी के लाहिड़ी
वाले अध्ययन समूह ने प्रशिक्षण
पाठ्यक्रमों का पुनरीक्षण किया।
(3) सुरेन्द्र
नाथ समिति रिपोर्ट (2003)
इस समिति ने यह सिफ़ारिश
की कि वार्षिक निष्पादन
मूल्यांकन रिपोर्ट को आगामी असाइनमेंट्स
के लिए प्रशिक्षण आवश्यकताओं
का पता करने के
एक साधन के रूप
में प्रयोग किया जा सकता
है।
(4) युगांधर
समिति रिपोर्ट
अगस्त 2000 में, पूर्व निदेशक
श्री बी एनयुगांधर, लाल
बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी ने अध्यक्ष के
रूप में एक समिति
गठित की ताकि प्रशिक्षण
आवश्यकताओं के लिए प्रशिक्षण
को और उपयोगी बनाने
के तरीकों पर विचार करने
हेतु सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों की समीक्षा की
जा सके।
(5) आर.
वी. वी. अय्यर समिति रिपोर्ट (2007)
2007 में, भारतीय प्रशासनिक सेवा इंडक्शन प्रशिक्षण
की जांच करने तथा
इसकी समीक्षा करने के लिए
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
द्वारा आर वी वैद्यनाथन
अय्यर समिति गठित की।
अय्यर
समिति की रिपोर्ट में
पाठ्यक्रम में कई ढांचागत
परिवर्तनों की सिफ़ारिश की
गई।
(6) डॉ.
वाई. के. अलघ समिति रिपोर्ट (2009)
अलघ समिति ने सेवाकालीन प्रशिक्षण
कार्यक्रम में बड़े परिवर्तनों
की सिफ़ारिश की जिसे इस
समय मिड कैरियर कार्यक्रम
के रूप में संचालित
किया जा रहा है।
(7) राष्ट्रीय
प्रशासनिक अनुसंधान संस्थान द्वारा भ.प्र.से. अधिकारियों के लिए एम सी टी पी की मूल्यांकन रिपोर्ट (2010)
राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (पूर्व राष्ट्रीय प्रशासनिक अनुसंधान संस्थान) ने एम सी
टी पी पाठ्यक्रमों केप्रभाव
परएक मूल्यांकन अध्ययन किया।
(8) किरन
अग्रवाल समिति रिपोर्ट (2014)
किरन अग्रवाल समिति ने विभिन्न स्तर
के वर्तमान पाठ्यक्रमों में कुछ मुख्य
आवश्यकताओं का पता लगाया
और पाठ्यक्रम की रूप रेखा
में सुधार लाने के लिए
कई उपायों की सिफ़ारिश की।
समिति ने संवर्ग आवंटन
प्रणाली की पुनः व्यवस्था
करने तथा आधारिक पाठ्यक्रम
शुरू होने से पहले
संवर्ग अधिसूचित करने के लिए
मंत्रालय को मजबूती से
अपनी सिफ़ारिश भेजी।
उपरोक्त
के अलावा, अकादमी प्रत्येक पाठ्यक्रम के अंत में
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, विषय विशेषज्ञों तथा
प्रतिभागियों के समकालीन फीडबैक
और प्रतिभागियों के साथ आयोजित
विस्तृत डि- ब्रीफिंग सत्रों
सहित व्यापक विचार विमर्शों पर आधारित प्रत्येक
पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों को
दिये गए विषयों का
निरंतर परिष्करण तथा मापन करती
रहती है।
समिति
ने संवर्ग आवंटन प्रणाली की पुनः व्यवस्था
करने तथा आधारिक पाठ्यक्रम
शुरू होने से पहले
संवर्ग अधिसूचित करने के लिए
मंत्रालय को मजबूती से
अपनी सिफ़ारिश भेजी।
उपरोक्त
के अलावा अकादमी प्रत्येक पाठ्यक्रम के अंत में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, विषय विशेषज्ञों तथा प्रतिभागियों के समकालीन फीडबैक और प्रतिभागियों के साथ आयोजित विस्तृत डि- ब्रीफिंग सत्रों सहित व्यापक विचार विमर्शों पर आधारित प्रत्येक पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों को दिये गए विषयों का निरंतर परिष्करण तथा मापन करती रहती है।